द टाइगर के सीन पूरी रात सपनें में आते रहे. कहानी
मूलतः एक बूढ़े शिकारी और एक टाइगर की थी – किस प्रकार
उनकें रिश्तें स्थापित होएं हैं और प्रतिद्वंदी होतें हुए भी, वें किस प्रकार सह-अस्तित्व को रूप देनें का प्रयास करतें हैं. कोरिया देश के जंगल पहाड़ में रहने वाले ये दोनों
प्रोटागनिस्ट्स (protaganists) लालची शिकारियों और जापानी फ़ौज अफसरों के डोमीनेटिंग (dominating) घमंड के सामने सर न झुकाकर अपने जंगल के नियम का पालन करतें हैं. उन्हें घोर विश्वास अपने सह-जीवन के मूल्यों पर – वें कपट के सामने न झुक कर अपनी बहादुरी
मरते दम तक जीना चाहतें हैं.
स्टोरी कुछ इस प्रकार हैं
जिसे मै खुद ना लिख कर विकिपीडिया से यहाँ कॉपी कर रहां हूँ. .. https://en.wikipedia.org/wiki/The_Tiger:_An_Old_Hunter's_Tale
The Tiger is set in 1925, with
Korea having already been under Japanese rule for more than two decades.
Determined to crush the morale of the local population, the authorities — or,
at least, the governor — is at work to exterminate the country's tigers, an
animal seen as the embodiment of the Korean national spirit. But the plan has
hit a snag: Casualties are mounting as soldiers fail in their attempts to kill
a remaining streak on Jirisan, one of Korea's most sacred mountains.
As it happens, Jirisan is also the home of the film's protagonist,
Man-duk (Choi),
who — as shown in the film's prologue — was once the best and most
dignified hunter in the region. By the time he is summoned to the governor's
office in 1925, he has already become a wreck, a sickly widower who long ago
traded in his shooting prowess for an alcohol-fueled existence. As Man-duk
retreats into his stupor, other desperate hunters of more questionable skill
come to the fore — namely a gang led by the callous Gu-kyung (Jeong Man-sik).
They are soon joined by Man-duk's son Seok (Sung Yoo-bin), a teenager
hoping to earn some money and pedigree so he can marry his sweetheart.
Of course, Man-duk doesn't stay out of the
picture for long. Shocked into sobriety when he realizes Seok has joined the
deadly mission, the decommissioned hunter finally reawakens his old self when
tragedy strikes. Through flashbacks, we learn that Man-duk and the tiger
have met previously and, despite having killed each one another's loved ones,
are more kindred spirits than sworn enemies. Both the hunter and his quarry
abide by a moral code which has become passé at a time when cynicism
reigns and the powerful (in this case, the Japanese occupiers) play locals
against each other.
अश्विनी ने जब पूछा की
फिल्म कैसी लगी तो मैंने कहा – बहुत बढ़िया,
दोनों ही शेर थे और शेर की तरह जीए’. एक समय शिकारी ने टाइगर की मदद की थी (बचपन में उसकी रक्षा
की थी, खिलाया था) तो टाइगर भी शिकारी के बेटें पर
वार नहीं करता हैं (जब बेटे को जापानी शिकार समूह का हिस्सा बनानें में कामयाब हो
जातें हैं, इस आशा में की बूढा शिकारी भी अपने बेटे के साथ
टाइगर पकडनें में मदद करेगा). अंतिम क्षणों में जब लालची शिकारियों और जापानियों के
विन्धवस्कारी रणनीतियों के कारण शिकारी का सोलह वर्षीय बेटा मर जाता हैं और टाइगर
के भी परिवार का अंत हो जाता है और वह लड़ते लड़ते घायल हो चूका हैं, तब वह शिकारी से मिलने उसके घर जाता हैं –
दहाड़ता है ‘देखो मित्र तुम भी घायल हो और मै
भी’. बूढा शिकारी भी समझ जाता हैं ‘अब शायद समय आ गया हैं की हम अपना अंतिम खेल
खेलें’. अंतिम खेल यह दो दोस्त टाइगर की गुफा के पास पहाड़ के ऊपर पर
खेलते हैं. बर्फ की सर्दी में वें दोस्त अपना खेल करते हुए नीचे
(जानबूझ कर) गिरते हैं और पहाड़ की बर्फ में दफन हो जातें हैं.
निर्दयी लोभी शिकारीदल जो
जापानी फ़ौज के साथ शिकार पर हैं इन दोनों शेरों को नही पकड़ पाते हैं – गायब हो जाते हैं ये पहाड़ के देवता. और कायम रहता हैं बहादुर, अपराजित भगवान् पर विश्वास जो जंगल पहाड़ की रक्षा करता हैं. क्या यह विश्वास गलत हैं की एक शक्ति प्रकृती की रक्षा कर
रही हैं जिसका विन्ध्वंस करना, गलत हैं और
ना-मुमकिन भी. प्रकृति पर विजय हासिल करने का मानवीय षड़यंत्र सह-अस्तित्व, सह-जीवन को किस प्रकार नष्ट करने का प्रयास
करता है, यह फिल्म इसी को प्रदर्शित करती हैं.
इस फिल्म ने मुझ पर बड़ा
प्रभाव छोड़ा – जो जंगल बुक से और आगे था. दोनों ही फिल्मों में सह-अस्तित्व और सामूहिकता का स्वर
सुनायी देता हैं – और चालाक
षड्यंत्रों को हराने की उम्मीद जगाती हैं. लेकिन इस फिल्म में बुढा शिकारी शायद बहुत दर्शकों को
उम्मीद देगा जो कठिन दौर में भी विशवास को डगमगानें नहीं देतें हैं. वह विशवास और अपने मूल्यों के प्रकृति मूल्यों के प्रति
प्रतिबद्धता – ठंडी हवाएं चलें, बीमारी जकड़ लें, अपनी राह में अकेले हो जाएँ –
फिर भी ज़िंदगी आगे बढ़ते रहने का नाम हैं.
शायद जिस प्रकार से बूढ़े
शिकारी में जो ताक़त प्रदर्शित हैं वह असलियत में अब नहीं दिखती लेकिन तो भी यह
फिल्म उन पुरानी कहानियों की याद दिलाती हैं जब इंसान के पास सिर्फ दो मुख्य चीजें
थी – एक अपनी शारीरिक ताक़त, हुनर एवं दूसरा उसकी मानसिक, भावनात्मक ताक़त –
और पूंजीवादी जीवन पद्दती पुरे तरह घर नहीं कर गयी हैं. पहाड़ के भगवान् टाइगर के प्रति श्रधा और अपने सह-जीवन
मूल्यों से प्रेम के बीच हमारें आदिवासियों के बीच अभी पूंजी भी घर बनना रही हैं
क्योंकि सामाजिक आर्थिक जन जीवन में अब प्रति-स्पर्धा ही नहीं परन्तु ‘सरवाईवल ऑफ़ द फिट्टेस्ट’ का मूल्य काम कर रहा हैं. बढ़ते व्यक्तिवादी जीवन में हमें अपने अस्तित्व की चिंता हैं
और प्रकृति समाज के संतुलन पर हमारा ध्यान ही नहीं हैं. कोरिया देश में जापानी, लूट की
प्रवृति प्रोत्साहित करतें रहे और कुछ पूंजीवादी मूल्य इसी प्रयासों में देशज
लोगों में घर कर गए.
एक राजनैतिक कमेंट करती हैं
यह फिल्म – अपने सह-जीवन के मूल्यों
के प्रति और पूंजीवादी, व्यक्तिवादी रणनीतियों के विरुद्ध. बूढ़े शिकारी का चित्रण आशा, उम्मीद जगाता हैं.
आयोजन के लिए धन्यवाद
फिल्म का आयोजन हुआ था
रांची शहर में ‘साल सकम’ समूह द्वारा. और क्यूँकी भारत के पठारी क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों
का एक केंद्र हैं इसलिए ऐसे चर्चाएँ जिनका सन्दर्भ आदिवासी जन-जीवन एवं प्रकृति से
जुड़ा हुआ है, यह समूह कुछ अंतराल में,
आयोजित करनी की कोशिश करता हैं.
फिल्म जबरदस्त थी. लेकिन क्योंकि कोरियाई भाषा में थी अंग्रेजी सबटाईटेल्स के साथ इसलिए मुझे लगता है की फिल्म प्रदर्शन के दौरान २-३ मध्यांतर करने की आवश्यकता थी की अंग्रेजी ना पढ़ सकने वाले हिंदी भाषी लोगों के लिए कुछ फिल्म अनुवाद किये जा सकें.
फिल्म जबरदस्त थी. लेकिन क्योंकि कोरियाई भाषा में थी अंग्रेजी सबटाईटेल्स के साथ इसलिए मुझे लगता है की फिल्म प्रदर्शन के दौरान २-३ मध्यांतर करने की आवश्यकता थी की अंग्रेजी ना पढ़ सकने वाले हिंदी भाषी लोगों के लिए कुछ फिल्म अनुवाद किये जा सकें.